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बुधवार, 20 अप्रैल 2016

love story प्रेम कथा 1

गुजरात का हमीर जाडेजा अपनी ससुराल अमरकोट (सिंध) आया हुआ था | उसका विवाह अमरकोट के राणा वीसलदे सोढा की पुत्री से हुआ था | राणा वीसलदे का पुत्र महिंद्रा व हमीर हमउम्र थे इसलिए दोनों में खूब जमती थी साथ खेलते,खाते,पीते,शिकार करते और मौज करते | एक दिन दोनों शिकार करते समय एक हिरण का पीछा करते करते दूर लोद्र्वा राज्य की काक नदी के पास आ पहुंचे उनका शिकार हिरण अपनी जान बचाने काक नदी में कूद गया, दोनों ने यह सोच कि बेचारे हिरण ने जल में जल शरण ली है अब उसे क्या मारना | शिकार छोड़ जैसे दोनों ने इधर उधर नजर दौड़ाई तो नदी के उस पार उन्हें एक सुन्दर बगीचा व उसमे बनी एक दुमंजिली झरोखेदार मेड़ी दिखाई दी | इस सुनसान स्थान मे इतना सुहावना स्थान देख दोनों की तबियत प्रसन्न हो गयी | अपने घोड़े नदी मे उतार दोनों ने नदी पार कर बागीचे मे प्रवेश किया इस वीरानी जगह पर इतना सुन्दर बाग़ देख दोनों आश्चर्यचकित थे कि अपने पडौस मे ऐसा नखलिस्तान ! क्योंकि अभी तक तो दोनों ने ऐसे नखलिस्तानों के बारे मे सौदागरों से ही चर्चाएँ सुनी थी |
उनकी आवाजें सुन मेड़ी मे बैठी मूमल ने झरोखे से निचे झांक कर देखा तो उसे गर्दन पर लटके लम्बे काले बाल,भौंहों तक तनी हुई मूंछे,चौड़ी छाती और मांसल भुजाओं वाले दो खुबसूरत नौजवान अपना पसीना सुखाते दिखाई दिए | मूमल ने तुरंत अपनी दासी को बुलाकर कर कहा- नीचे जा, नौकरों से कह इन सरदारों के घोड़े पकड़े व इनके रहने खाने का इंतजाम करे, दोनों किसी अच्छे राजपूत घर के लगते है शायद रास्ता भूल गए है इनकी अच्छी खातिर करा |
मूमल के आदेश से नौकरों ने दोनों के आराम के लिए व्यवस्था की,उन्हें भोजन कराया | तभी मूमल की एक सहेली ने आकर दोनों का परिचय पूछा | हमीर ने अपना व महिंद्रा का परिचय दिया और पूछा कि तुम किसकी सहेली हो ? ये सुन्दर बाग़ व झरोखेदार मेड़ी किसकी की है ? और हम किस सुलक्षीणी के मेहमान है ?
मूमल की सहेली कहने लगी- "क्या आपने मूमल का नाम नहीं सुना ? उसकी चर्चा नहीं सुनी ? मूमल जो जगप्यारी मूमल के नाम से पुरे माढ़ (जैसलमेर) देश मे प्रख्यात है | जिसके रूप से यह सारा प्रदेश महक रहा है जिसके गुणों का बखान यह काक नदी कल-कल कर गा रही है | यह झरोखेदार मेड़ी और सुन्दर बाग़ उसी मूमल का है जो अपनी सहेलियों के साथ यहाँ अकेली ही रहती है |" कह कर सहेली चली गयी |
तभी भोजन का जूंठा थाल उठाने आया नाई बताने लगा -" सरदारों आप मूमल के बारे मे क्या पूछते हो | उसके रूप और गुणों का तो कोई पार ही नहीं | वह शीशे मे अपना रूप देखती है तो शीशा टूट जाता है | श्रंगार कर बाग़ मे आती है चाँद शरमाकर बादलों मे छिप जाता है | उसकी मेड़ी की दीवारों पर कपूर और कस्तूरी का लेप किया हुआ है,रोज ओख्लियों मे कस्तूरी कुटी जाती है,मन-मन दूध से वह रोज स्नान करती है,शरीर पर चन्दन का लेप कराती है | मूमल तो इस दुनिया से अलग है भगवान् ने वैसी दूसरी नहीं बनाई |"
कहते कहते नाई बताने लगा-" अखन कुँवारी मूमल,पुरुषों से दूर अपने ही राग रंग मे डूबी रहती है | एक से एक खुबसूरत,बहादुर,गुणी,धनवान,जवान,राजा,राजकुमार मूमल से शादी करने आये पर मूमल ने तो उनकी और देखा तक नहीं उसे कोई भी पसंद नहीं आया | मूमल ने प्रण ले रखा है कि वह विवाह उसी से करेगी जो उसका दिल जीत लेगा,नहीं तो पूरी उम्र कुंवारी ही रहेगी |"
कुछ ही देर मे मूमल की सहेली ने आकर कहा कि आप दोनों मे से एक को मूमल ने बुलाया है |
हमीर ने अपने साले महेन्द्रा को जाने के लिए कहा पर महिन्द्रा ने हमीर से कहा- पहले आप |
हमीर को मेड़ी के पास छोड़ सहेली ने कहा -" आप भीतर पधारें ! मूमल आपका इंताजर कर रही है |
हमीर जैसे ही आगे चौक मे पहुंचा तो देखा आगे उसका रास्ता रोके एक शेर बैठा है और दूसरी और देखा तो उसे एक अजगर रास्ते पर बैठा दिखाई दिया | हमीर ने सोचा मूमल कोई डायन है और नखलिस्तान रचकर पुरुषों को अपने जाल मे फंसा मार देती होगी | वह तुरंत उल्टे पाँव वापस हो चौक से निकल आया |
हमीर व महिंद्रा आपसे बात करते तब तक मूमल की सहेली आ गयी और महिंद्रा से कहने लगी आप आईये मूमल आपका इंतजार कर रही है |
महिंद्रा ने अपना अंगरखा पहन हाथ मे भाला ले सहेली के पीछे पीछे चलना शुरू किया | सहेली ने उसे भी हमीर की तरह चौक मे छोड़ दिया,महिंद्रा को भी चौक मे रास्ता रोके शेर बैठा नजर आया उसने तुरंत अपना भाला लिया और शेर पर पूरे वेग से प्रहार कर दिया | शेर जमीन पर लुढ़क गया और उसकी चमड़ी मे भरा भूसा बाहर निकल आया | महिंद्रा यह देख मन ही मन मुस्कराया कि मूमल उसकी परीक्षा ले रही है | तभी उसे आगे अजगर बैठा दिखाई दिया महिंद्रा ने भूसे से भरे उस अजगर के भी अपनी तलवार के प्रहार से टुकड़े टुकड़े कर दिए | अगले चौक मे महिंद्रा को पानी भरा नजर आया,महिंद्रा ने पानी की गहराई नापने हेतु जैसे पानी मे भाला डाला तो ठक की आवाज आई महिंद्रा समझ गया कि जिसे वह पानी समझ रहा है वह कांच का फर्श है |
कांच का फर्श पार कर सीढियाँ चढ़कर महिंद्रा मूमल की मेड़ी मे प्रविष्ट हुआ आगे मूमल खड़ी थी,जिसे देखते ही महिंद्रा ठिठक गया | मूमल ऐसे लग रही थी जैसे काले बादल मे बिजली चमकी हो, एड़ी तक लम्बे काले बाल मानों काली नागिन सिर से जमीन पर लोट रही हों| चम्पे की डाल जैसी कलाइयाँ,बड़ी बड़ी सुन्दर आँखे, ऐसे लग रही थी जैसे मद भरे प्याले हो,तपे हुए कुंदन जैसा बदन का रंग,वक्ष जैसे किसी सांचे मे ढाले गए हों,पेट जैसे पीपल का पत्ता,अंग-अंग जैसे उफन रहा हो |
मूमल का यह रूप देखकर महिंद्रा के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा-" न किसी मंदिर मे ऐसी मूर्ति होगी और न किसी राजा के रणवास मे ऐसा रूप होगा |" महिंद्रा तो मूमल को ठगा सा देखता ही रहा | उसकी नजरें मूमल के चेहरे को एकटक देखते जा रही थी दूसरी और मूमल मन में कह रही थी - क्या तेज है इस नौजवान के चेहरे पर और नयन तो नयन क्या खंजर है | दोनों की नजरें आपस में ऐसे गड़ी कि हटने का नाम ही नहीं ले रही थी |
आखिर मूमल ने नजरे नीचे कर महिंद्रा का स्वागत किया दोनों ने खूब बाते की ,बातों ही बातों में दोनों एक दुसरे को कब दिल दे बैठे पता ही न चला और न ही पता चला कि कब रात ख़त्म हो गयी और कब सुबह का सूरज निकल आया |
उधर हमीर को महेन्द्रा के साथ कोई अनहोनी ना हो जाये सोच कर नींद ही नहीं आई | सुबह होते ही उसने नाई के साथ संदेशा भेज महिंद्रा को बुलवाया और चलने को कहा | महिंद्रा का मूमल को छोड़कर वापस चलने का मन तो नहीं था पर मूमल से यह कह- "मैं फिर आवुंगा मूमल, बार बार आकर तुमसे मिलूँगा |"
दोनों वहां से चल दिए हमीर गुजरात अपने वतन रवाना हुआ और महिंद्रा अपने राज्य अमरकोट |

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